दर्द से जी चीख उठा
वह लम्हा जब याद आया।तेरे शब्दों से बिखरी थी जब
कोई और किनारा न मिला तब।
वह लम्हा जब याद आया।तेरे शब्दों से बिखरी थी जब
कोई और किनारा न मिला तब।
उसी वक़्त आँखें मूंदी
सब्र की दीवार फिर से टूटी।
एक हाथ बढ़ा आश्रय देने
बुने रिश्तों के ताने बाने।
दिल ने ढूंढा फिर से सहारा
आँखें खोल देखा हाथ था तेरा।
असमंजस हुआ यह कैसा रिश्ता है!
जो दुःख दे वही सहारा है!
स्वीकार किया यही है भाग्य मेरा
सुख भी तेरा दुःख भी तेरा।
6 Comments
Nice poem. Very emotional & Coming from heart!!
Thank you Kiran. Am happy it reached you.
बहुत खूब लिखती हैं आप… यूँ ही लिखते गाते रहिये….
भावुक हैं आप तभी इतनी रस बरसती हैं आपकी रचनावों में…. शुक्रिया… यूँ ही उढेलते रहें
शुक्रिया आशुजी
Deep as ocean and very real.
Though it made me restless.. such anguish. it feels like a stuck situation.Wonder what’s in store for her after the acceptance ??
this is the one of the best creativity i have ever read… amazing work from your side… brilliantly penned…